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राजस्थान न्यायिक कर्मचारी संघ का इतिहास अत्यधिक संघर्षपूर्ण और जटिल परिस्थितियों में विकसित हुआ है। राजकीय मंत्रालयिक सेवा में न्यायिक कर्मियों की एक विशेष स्थिति है, क्योंकि उनके कार्य में कानून और धाराओं का लगातार उपयोग होता है। इस कारण से, प्रथम लॉ कमीशन की रिपोर्ट में न्यायिक कर्मियों के लिए एक विशेष वेतन श्रृंखला का प्रावधान किया गया। यदि न्यायिक कर्मचारी विधि स्नातक होते हैं, तो उनके कार्य को विधि व्यवसाय माना जाता है और उन्हें मजिस्ट्रेट पद की परीक्षा देने के लिए विशेष कोटा निर्धारित करने का भी उल्लेख किया गया था।
संघ की स्थापना राजस्थान कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष श्री मोहनलाल जी जैन के निर्देशन में की गई थी। इसके संस्थापक सदस्य श्री दुर्गाप्रसाद शर्मा, श्री डूंगरभाई राव, श्री मुकुट बिहारी गुप्त, श्री कुंज बिहारी लाल शर्मा, श्री विजयनृसिंह व्यास, श्री जगदीश भारती, मुरलीधर मिश्र आदि प्रमुख न्यायिक कर्मचारी थे। बाद में, महासंघ ने जैन गुट से संबंध स्थापित किया और 1980 में संघ को विधिवत पंजीकरण प्राप्त किया, जिससे संघ को एक कानूनी रूप प्राप्त हुआ।
संघ के गठन के बाद, 1989 में राजस्थान न्यायिक कर्मचारी संघ ने एक लंबी हड़ताल की, जिसमें उनकी मांगों को आंशिक रूप से स्वीकार किया गया। इस संघर्ष ने कर्मचारियों में संगठन की अहमियत और सूझबूझ का अहसास कराया। इसके परिणामस्वरूप, आज राजस्थान के न्यायिक कर्मचारी अन्य कर्मचारी संगठनों से कहीं अधिक सक्रिय और जागरूक हैं। शेट्टी कमीशन की सिफारिशों को लागू कराने के लिए संघ ने हाल ही में दो बार सामूहिक अवकाश लिया, जिससे राजस्थान के अधीनस्थ न्यायालयों में कार्य ठप्प हो गया। इसके परिणामस्वरूप, उच्च न्यायालय और राज्य सरकार ने कई सिफारिशों के संबंध में आदेश जारी किए, जिससे कर्मचारियों को लाभ हुआ।
भविष्य में, संघ उन आदेशों में मौजूद विसंगतियों को सुधारने के लिए प्रयासरत है और उच्च वेतन श्रृंखला प्राप्त करने के लिए भी न्यायिक प्रक्रिया के तहत सक्रिय रूप से काम कर रहा है।